गोद के ठाकुर जी

गोद के ठाकुर जी :

कुछ छोटी मूर्तियां श्रीनाथ जी के समीप प्रदर्शित की जाती है, जिन्हें “गोद के ठाकुर जी” के नाम से जाना जाता है स्वरूप निम्नानुसर है :-। ये श्रीनाथ जी के समीप विराजने वाले

श्री मदनमोहन जी :

यह वेणु वादन करते हुए त्रिभंगी मुद्रा में भगवान् श्रीकृष्ण की धातु निर्मित छोटे आकार की मूर्ति है जो श्रीनाथ जी के बाईं ओर प्रदर्शित की जाती है वल्लभाचार्य ने सर्वप्रथम इस स्वरूप की सेवा करने हेतु अच्युतदास नामक एक गौड़ ब्राह्मण को अधिकृत किया । परन्तु कुछ काल पश्चात आचार्य श्री की आसुर व्यामोहलीला से अच्युदास काफी विरहा-शक्त हो गया और इन भगवान को श्री गोपीनाथ जी को सुपर्द कर बदरीकाश्रम चला गया और वहीं जाकर उसका परलोकवास हुआ 1 श्री गोपीनाथ जी ने इस स्वरूप को श्रीनाथ जी के समीप पधराया। जो चित्रों में भी दृष्टव्य है । 

भगवान कृष्ण के इस स्वरूप को श्रावण मास में डोल तिवारी में झूले में झुलाया जाता है एवं ग्रीष्म काल में आयोजित नौका-मनोरथ के उत्सव में नोका-विहार कराया जाता है ।

श्री बालकृष्ण लाल जी :

यह मूर्ति भगवान श्रीकृष्ण के शिशु रूप का प्रतिनिधित्व करती है 1 इसमें शिशु कृष्ण को फर्श पर घुटनों के बल चलते हुए एक हाथ में मक्वन का कटोरा पकड़े हुए प्रदर्शित किया गया है यह स्वरूप श्री वल्लभाचार्य को अडेल में उस समय प्राप्त हुआ जब वे यमुना नदी में स्नान कर रहे थे 25 जन्माष्टमी, वामनदादशी, कार्तिक शुक्ल एकादशी प्रबोधिनी और रामनवमी को जन्म के समय पंचामृत स्नान की रस्म इस मूर्ति पर सम्पन्न की जाती है तथा मदनमोहन जी के साथ इन्हें भी झूले में झुलाया जाता है श्रीनाथ जी के लगभग सभी चित्रों में यह स्वरूप श्री मदनमोहन जी के स्वरूप के साथ ही ओकत देखा जा सकता है ।

श्री शालिग्राम जी :

यह स्वरूप काले पत्थर पर भगवान् विष्णु का प्रतीक है । कहा जाता है कि यह विशेष प्रकार का शालिग्राम स्वरूप वल्लभाचार्य को दक्षिण भारत से प्राप्त हुआ था । इन्हें श्रीनाथ जी के दाहिनी तरफ प्रदर्शित किया जाता है । इनका नृसिंह जयन्ती के उत्सव पर जन्म के समय पंचामृत स्नान करवाया जाता है । चित्रों में भी यह अभिप्राय सर्वत्र अंकित देखा जा सकता है ।

 गिरिराज शिला :

यह गोवर्धन पर्वत की चट्टान का एक छोटा सा टुकडा है । जब श्रीनाथ जी गोवर्धन पर्वत से रवाना हुए तब श्री दामोदर जी महाराज ने इसे गोवर्धन पर्वत से कृष्ण भगवान् के गिरिराज स्वरूप के रूप में प्राप्त कर श्रीनाथ जी के पास पचराया। जब अन्नकूटोत्सव पर श्रीनाथ मन्दिर के गोवर्धन पूजा चौक में गोमय का गोवर्धन निर्मित किया जाता है इन्हें उसमें बहुत श्रद्धापूर्वक विराजमान कर गिरिराज प्रभु की भावना से पूजा अर्पित की जाती है ।

श्रीमदल्लभाचार्य की चरण पादुका :

वंश परम्परानुसार यह पादुका श्री गिरधर जी महाराज ने अपनु पुत्रों को प्रदान की थी । उसमें से एक नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के मन्दिर में तथा दुसरी कोटा स्थित मथुरानाथ जी के मन्दिर में विद्यमान है । नित्यसेवा के साथ इनकी भी श्रद्धापूर्वक सेवा की जाती है तथा उत्सवों में इनका श्रृंगार कर भोग भी चढ़ाया जाता है । चित्रों में भी इन्हें प्रदर्शित किया जाता है। 

अन्य महत्वपूर्ण स्वरूप :-

नवनीतप्रिया जी :

ये भगवान श्रीकृष्ण के बाल-भाव के स्वरूप है, जैसा कि नाम से ही प्रदर्शित होते हैं इन्हें ताजा मक्खन अत्यन्त प्रिय है । यह धातु निर्मित एक छोटी मूर्ति है जिसका उद्गम स्थल दक्षिण भारत है । इस मूर्ति में बालकृष्ण को घुटनों के बल चलता हुआ दायें हाथ में मक्खन का कटोरा तथा बायां पृथ्वी पर टिकाये दिखाया गया है ।

नवनीतप्रिया जी का मन्दिर नाथदारा में श्रीनाथ मन्दिर के समीप ही दायें भाग में स्थित है । गोवर्धन पूजा चौक से आचार्य श्री बैठक की ओर जाते हुए मार्ग में श्रीकृष्ण भण्डार के सामने यह मन्दिर है ।

इस स्वरूप का महत्व इस कारण भी बढ़ जाता है कि इसे श्रीनाथ जी पर्याय के रूप में भी सेवा प्रदान की जाती है । नन्दमोहत्सव, दिपावली, अन्नकूट तथा डोलोत्सव के अवसरों पर कृष्ण के नवजात स्वरूप के रूप में श्रीनाथ जी का पर्याय मानते हुए सेवा अर्पित की जाती है । 

महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य पृथ्वी परिक्रमा के अनन्तर एक समय गोकुल के महावन में पधारे वहां पर एक क्षत्राणी वैष्णव महिला ने भगवान् कृष्ण के चार स्वरूप है मूर्तियां आचार्य जी को सर्मार्पत किये उन्हीं में श्रीगोकुल चन्द्रमा जी, श्री ललित – त्रिभंगी जी एवं श्री लाड़लेश जी के साथ श्री नवनीतप्रिया जी थे चारों स्वरूप 1 आचार्य जी ने अपने अलग-अलग सेवकों के माथे पधरा दिये थे श्री नवनीत प्रिया जी को आचार्य श्री ने अपने एक परम सेवक श्री गज्जनन्धावन के माथे पधरा कर सेवा का अधिकार प्रदान किया ।  ये आगरा निवासी श्री गज्जनधवन को नवनीतप्रिया जी के साथ प्रत्यक्ष रूप में कीड़ा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वे उनसे एक क्षण मात्र को भी अलग नहीं होते थे एक दिन श्री नवनीतप्रिया जी ने गज्जनधावन को वल्लभाचार्य जी के पास ले चलने की आज्ञा प्रदान की। इस प्रकार यह स्वरूप पुनः आचार्य जी को प्राप्त हो गया । तब से वे निरन्तर उन्हीं के साथ रहते रहे यहां तक कि आचार्य जी व नवनीतप्रिया जी एक ही शैय्या पर सोते थे । सम्प्रदाय में अनेक ऐसे चित्र उपलब्ध है जिनमें आचार्य जी को श्री नवनीत प्रिया जी के साथ पोढ़े हुए  प्रदर्शित किया गया है । इसके पश्चात् ये स्वरूप वल्लभाचार्य के परमाराध्य रहे, वे जहां कहीं भी जाते इन्हें अपने साथ ही रखते । आज भी श्री नवनीर्ताप्रया जी वर्तमान तिलकायत श्री गोविन्दलाल जी के घर के ठाकुर माने जाते है। 

श्री नवनीतप्रिया जी की शिशु आयु के अनुसार सादा तनिया धारण करवाई जाती है। श्रृंगार में टोपियों का प्रयोग अधिकांशतः किया जाता है । ये टोपियाँ सोलह प्रकार की होती है। चित्रों में भी नवनीतप्रिया जी को प्रायः एक विशेष प्रकार की पंखेनुमा टोपी पहने चित्रित किया जाता है  नाथद्वारा मन्दिर के भित्ति-चित्रों चित्र सं 80, 1278 व सम्प्रदाय के अनेक चित्रों में भी जो वालक चित्रित किये गये हैं उन्हें प्रायः नवनीतप्रिया जी के सदृश्य टोपी पहने चित्रित किया गया है। चित्र संख्या 80, 127 8 इसी का अनुसरण राजस्थान की विभिन्न चित्रशैलियों में भी यत्र-तत्र देखा जा सकता है किये जाते है इनके श्रृंगार भी श्रीनाथ जी के अनुसार ही श्रीनाथ जी की प्रत्येक सामग्री आपको तथा आपकी प्रत्येक सामग्री श्रीनाथ जी को आरोगाई जाती है । राग सेवा में कीतीनयों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं के पदों का ही गायन किया जाता है। 

बाल भाव के कारण प्रातः काल इनके मंगला तथा राजभोग दो ही दर्शन कदाचित पवित्रा एकादशी, प्रबोधिनी, राखी और र्याद वाहर पलना हो खुलते है तो एक दर्शन बाहर भी खोले जाते हैं संध्याकाल में उत्थापन भोग और आरती तीनों दर्शन खुलते हैं शयन केवल वर्ष में साठ दिन ही खुलते हैं  उनमें बसन्त पंचमी से डोले तक चालीस दिन और दशहरे से दीपावली तक बीस दिन तक यदा-कदा उत्सव मनोरथ आदि पर निज मन्दिर के समीप ही बने बगीचे तथा बैठक वाले बगीचे में पधारते हैं  जहां इन्हें अनेकानेक फव्वारों के वीच अत्यन्त मनोरम चित्ताकर्षक दर्शनों में भक्तों द्वारा भाव-विभोर होकर निहारते हुए देखा जा सकता है ।

 

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