श्रीनाथ जी

श्रीनाथ जी :

नाथद्वारा में प्रतिष्ठित श्रीनाथ जी पुष्टिमार्ग में सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप है । यह प्रधान सेव्य-विग्रह भगवान कृष्ण की सात वर्षीय आयु प्रतिनिधित्व का करता है । उनका बायां हाथ गोवर्धन धारण की मुद्रा में उठा हुआ है । तथा दायां हाथ उनकी कमर पर टिका है । यह मूर्ति बनमाला धारण किये है । यह 1.37 मीटर ऊंची है तथा चौकोर पीठिका में प्रतिष्ठित है । पीठिका में उत्कीर्ण चट्टानें गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है तथा इसी के बीच अन्य कई आकृतियां देखी जा सकती है । उसमें सर्वप्रथम उर्दूव भुजा की तरफ दो मुनि बैठे हैं उनके नीचे एक सर्प फिर नृसिंह उसके बाद सबसे नीचे दो मयूर है । दूसरी और सबसे ऊपर एक मुनि, उसके नीचे मेष तथा फिर सर्प तथा सतह पर दो गायें हैं। ऊपर श्रीमस्तक पर पीठिका में फल लिये हुए एक शुक है तोता है सबसे नीचे यमुना है  इस मूर्ति के निर्माण काल के विषय में विदान एक मत नहीं है ।

आनन्द कुमार स्वामी की मान्यता है, इस मूर्ति का समय कुषाण – युग है,  परन्तु राबर्ट स्केल्टन का मत है कि इस मूर्ति का समय 16 वी या 17 वीं शताब्दी है और यह राजस्थानी शैली की है ।” 6

अमित अम्बालाल भी इस विषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाये हैं । नाथद्वारा के वर्तमान तिलकायत श्री गोविन्दलाल जी के अनुसार 7 यह मूर्ति लाल काले रंग की गोवर्धन पर्वत की चट्टानों के समान है।

इस मूर्ति के इतिहास का निर्णय करते हुए, जैसा कि सम्प्रदाय के अभिलेखों में लिपिबद्ध है, स्पष्ट होता है कि इसका उद्गम स्थल मथुरा क्षेत्र है मूर्तिकला की दृष्टि से भी ये मथुरा म्यूजियम में सुरक्षित 7 वीं शताब्दी की कृष्ण की मूर्ति के साथ साम्य रखती है । यह मूर्ति गुप्तकाल से सम्बद्ध जान पड़ती है, जिसको गुप्तकाल के काफी समय पश्चात् सम्भवतया 1.5 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उत्कीर्ण किया गया होगा । “गर्ग संहिता” में उल्लेख मिलता है कि श्रीकृष्ण के 5 “नाथ” वाची स्वरूपों की भारत में प्रतिष्ठा की गई थी उनमें से “जगन्नाथ” पूर्व दिशा में, “रंगनाथ” दक्षिण दिशा में “द्वारिकानाथ” पश्चिम दिशा में और “बदरीनाथ” उत्तर दिशा में प्रतिष्ठित है 1 मध्यवर्ती गोवर्धन क्षेत्र में “श्रीनाथ” की प्रतिष्ठा हुई। चारों दिशाओं के नाथों के दर्शन करने पर भी श्रीनाथ जी का दर्शन किये बिना सुधीजन अपनी यात्रा को सफल नहीं मानते थे । १

भावुक भक्तजन अपने आराध्य भगवान श्रीनाथ जी में ही अपना सम्पूर्ण अभीष्ट देखते हैं । यहां तक कि पुष्टि सम्प्रदाय की सभी 8 निधियों स्वरूपों के दर्शन भी उन्हें  श्रीनाथ जी में हो  जाते हैं। जैसे मुख दधिलेपन से नवनीतप्रिया जी का, ठोडी पर लगे देदिप्यमान हीरे से श्री मथुराधीश जी, कटि प्रदेश पर रखे हस्थ से विठ्ठलनाथ जी, उर्ध्व से श्री गोकुलनाथ जी, मूयरपंखादि धारण करने से श्री गोकुल चन्द्रमा जी, मोहक मुखकमल से श्री मदनमोहन जी तथा आड़ एवं अलकावली आदि में श्री मुकुन्दराय जी का भाव निहित है । 

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