भावनाएँ :

भावनाएँ :

श्रीनाथ जी सहित समस्त पुष्टिमार्गीय स्वरूपों 8 मूर्तियों की सेवा से सम्बन्धित समस्त क्रिया-कलापों तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली राग, भोग और श्रृंगार-सामग्री अनेक प्रतीकात्मकता अर्थों से युक्त है, जिन्हें सम्प्रदाय में “भावना” के रूप में जाना जाता है। जिसके लिये एक प्रकार की “केलिग्राफिक” भाषा मृजित की गई है ये प्रतीक ‘स्वरूप’ की मनोभावना उससे संबधित कोई विशेष लीला अथवा किसी सतु के रूप में इस सम्प्रदाय के दाशीनक तत्वों का विवेचन करते हैं

मन्दिर के दो किंवाड़ स्वामिनी जी के दो नैत्रों की पलकें स्वामिनी जी के पलकें खोलने पर ही ठाकुर जी की झांकी हो सकती है । श्रीनाथ जी के समक्ष रखा हुआ शीशा जो स्वरूप की वस्त्रालंकार की साज-सज्जा को निरखनें के लिये मुखिया जी द्वारा भगवान् को दिखाया जाता है । इस तथ्य की तुलना स्वामिनी जी से की जाती है, जिनके हृदय में श्रीनाथ जी शाश्वत रूप से निवास करते हैं 1 पडधी पर रवा बंटा जिसमें 12 मुंडे हुए पान के बीड़े रखे होते हैं जो कि दादश निकुंज लीला का प्रतीक है 1 यहां तक कि कमल के फूलों की माला जो श्रीनाथ जी धारण करते हैं, राधा के हृदय का प्रतीक है 1 अपने हृदय से लगा कर रखते हैं भगवान के ललाट पर लगा है 20 जिसे भगवान आंग्ल भाषा के अक्षर यू की आकृति का तिलक यह तिलक पुष्टिमार्ग का भी प्रतीक है । यह तिलक आचार्यो गोस्वामियों तथा साधारण वैष्णवों के अतिरिक्त राजस्थान की परम्परागत चित्र शैलियों में अनेक राजाओं एवं सामंतों के मस्तक पर भी देखा जा सकता है जो उनका पुष्टिमार्गीय अनुयायी होना प्रदर्शित करता है। यह राधा के पैर का प्रतीक है, यह प्रतीक कृष्ण का राधा के प्रति सम्पर्ण का भाव प्रदर्शित करता है । 

श्रीनाथ जी के समक्ष प्रदर्शित पडधी पर रखा जल का पात्र “झारी” जो रंग के वस्त्र में लिपटी हुई श्रीनाथ जी के सभी चित्रों में प्रदर्शित की जाती लाल है । कृष्ण की धाय माता यशोदा का प्रतीक है जो वात्सल्य भाव की अभिव्यक्ति है। कभी-कभी ऐसा भी मत प्रकट किया जाता है कि यह जलपात्र स्वामिनी जी का प्रतीक ‘है जो माधुर्य भाव से युक्त है 1 झारी में रखा जल भगवान् का सर्वाधिक प्रिय यमुनाजल है । सिंहासन जिस पर श्रीनाथ जी का स्वरूप स्थित है, यशोदा माता की गोद का प्रतीक है । उनके दोनों और की जो पीठिका है, स्वामिनी जी की दोनों बाहें हैं तथा पीछे का भाग उनका हृदय समझा जाता है ।

आनन्द ही समस्त भावनाओं और श्रृंगारों का मुख्य आधार है 1 किसी सीमा तक उड़ते हुए कपड़े लहराती हुई काछनी झूलती-वतखाती फूलों से सजी चोटी आदि स्थिर मूर्ति पर इस प्रकार व्यवस्थित किये जाते हैं जो कि भक्तों की आनन्द से आन्दोलित भावनाओं को तीव्रता पूर्वक प्रस्फुटित करती है में भी दृष्टव्य है । 1 जो यथावत चित्रों

श्रीनाथ जी की आंखों का सम्प्रदाय के साहित्य में अक्सर वर्णन किया जाता उनकी कमल के सदृश्य आंखों का आकार इस प्रकार से नियोजित है रहा है कि वो नीचे की ओर देखती अपने आश्रय में आये भक्तजनों को अभय प्रदान करती प्रतीत होती है 1 उनके चेहरे के अत्यन्त आकर्षक एवं शानदार नाश के साथ उनके नेत्रों की समानता कामदेव के तीर-कमान से की जाती है।  जब सामने से देखा जाता है तो आंखें छोटे मुडे हुए खंजर के समान भाषित होती है । श्रीनाथ जी की आंखों के रोचक गुणों ने भावुक कलाकारों कवियों और भक्तों को बहुत प्रभावित किया है तथा उनकी कल्पना ने इन्हें अनेक सुन्दर उपमाओं के साथ ओभव्यक्त किया है । वल्लभ सम्प्रदाय के समस्त श्रीविग्रहों का शिल्प-विधान नैत्र संगति की दृष्टि से एक समान है । इस नैत्र – संगति के कारण ही, केवल श्री-विग्रह का मुख देखते ही निश्चय हो जाता है कि यह श्रीमुख वल्लभ कुल से संबंधित स्वरूप का है। 

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